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यथा॑ नो मि॒त्रो वरु॑णो॒ यथा॑ रु॒द्रश्चिके॑तति । यथा॒ विश्वे॑ स॒जोष॑सः ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

yathā no mitro varuṇo yathā rudraś ciketati | yathā viśve sajoṣasaḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

यथा॑ । नः॒ । मि॒त्रः । वरु॑णः । यथा॑ । रु॒द्रः । चिके॑तति । यथा॑ । विश्वे॑ । स॒जोष॑सः॥

ऋग्वेद » मण्डल:1» सूक्त:43» मन्त्र:3 | अष्टक:1» अध्याय:3» वर्ग:26» मन्त्र:3 | मण्डल:1» अनुवाक:8» मन्त्र:3


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब सबके साथ विद्वान् लोग कैसे वर्त्तें, इस विषय का उपदेश अगले मंत्र में किया है।

पदार्थान्वयभाषाः - (यथा) जैसे (मित्रः) सखा वा प्राण (वरुणः) उत्तम उपदेष्टा वा उदान (यथा) जैसे (रुद्रः) परमेश्वर (नः) हम लोगों को (चिकेतति) ज्ञानयुक्त करते हैं (यथा) जैसे (विश्वे) सब (सजोषसः) स्वतुल्य प्रीति सेवन करने वाले विद्वान् लोग सब विद्याओं के जाननेवाले होते हैं, वैसे यथार्थ वक्ता पुरुष सबको जनाया करें ॥३॥
भावार्थभाषाः - इस मंत्र में उपमालंकार है। जैसे विद्वान् लोग सब मनुष्यों को मित्रपन और उत्तम शील धारण कराकर उनके लिये यथार्थ विद्याओं की प्राप्ति और जैसे परमेश्वर ने वेदद्वारा सब विद्याओं का प्रकाश किया है, वैसे विद्वान् अध्यापकों को भी सब मनुष्यों को विद्यायुक्त करना चाहिये ॥३॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

(यथा) येन प्रकारेण (नः) अस्मान् (मित्रः) सखा प्राणो वा (वरुणः) उत्तम उपदेष्टोदानो वा (यथा) (रुद्रः) परमेश्वरः (चिकेतति) ज्ञापयति (यथा) (विश्वे) सर्वे (सजोषसः) समानो जोषः प्रीतिः सेवनं वा येषान्ते ॥३॥

अन्वय:

अथ सर्वैः सह विद्वांसः कथं वर्तेरन्नित्युपदिश्यते।

पदार्थान्वयभाषाः - यथा मित्रो यथा वरुणो यथा रुद्रो नोऽस्माँश्चिकेतति यथा विश्वे सजोषसः सर्वे विद्वांसः सर्वा विद्याश्चिकेतन्ति तथाऽऽप्ता जनाः सत्यं विज्ञापयन्तु ॥३॥
भावार्थभाषाः - अत्रोपमालंकारः। यथा सर्वैर्विद्वद्भिर्मैत्रीमुत्तमशीलं च धृत्वा सर्वेभ्यो मनुष्येभ्यो यथार्था विद्या उपदेष्टव्याः। यथा परमेश्वरेण वेदद्वारा सर्वा विद्याः प्रकाशितास्तथैवाध्यापकैः सर्वे मनुष्या विद्यायुक्ताः सम्पादनीया इति ॥३॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात उपमालंकार आहे. जसे विद्वान लोक सर्व माणसांना मैत्री व उत्तम शील धारण करवून त्यांना यथार्थ विद्या देतात व जसे परमेश्वराद्वारे वेदातून सर्व विद्या प्रकट केलेल्या आहेत तसे विद्वान अध्यापकांनीही सर्व माणसांना विद्यायुक्त करावे. ॥ ३ ॥